मधुपुर डालमिया धर्मशाला ज़मीन मामले में नप सकते है कई भूमाफिया एवं अधिकारी

Madhupur Dalmia Dharmshala News: मधुपुर डालमिया धर्मशाला का जिक्र करते ही कई सवाल उठने लगता है, क्या ऐसा था हमारा मधुपुर? और उनके लिए जिसकी गलत नज़र इस धर्मशाला पर पड़ी। उक्त बातें, बात चीत के दौरान शहर के अस्तानंद झा ने चुटकी लेते हुए एक शेर कहा।
"धोखा देने वाले शायद भूल ही गए, की मौका हमारा भी आएगा"
सार्वजानिक सम्पति को हथियाने में भू-माफिया क्या क्या खेल खेला है, किसी से छुपा नहीं है। मधुपुर में डालमिया धर्मशाला की ज़मीन को कैसे बेचा ये इतिहास के पन्नो में लिखा जायेगा। इसमें कई लोग शामिल थे, और किसी की जुबान नहीं खुली और नहीं आवाज़ हुई। एक मात्र व्यक्ति अस्तानन्द झा ने इस पर आवाज़ उठाया और लगातार संघर्ष के बाद झारखण्ड राज्य हिन्दू धार्मिक न्यास पर्षद ने आखिर में सज्ञान ले ही लिया। और उपायुक्त को इस पर अद्यतन स्थिति को अवगत कराने को कहा है।
इससे पूर्व जब बिहार हिन्दू धार्मिक न्यास पर्षद पटना के पत्रांक 790 दिनांक 15/07/1996 के माध्यम से डालमिया धर्मशाला के समुचित प्रबंधन के लिए अंचलाधिकारी मधुपुर को अस्थायी न्यासी नियुक्त किया गया था।
उसके बाद राज्य गठनोपरांत झारखंड राज्य हिन्दू धार्मिक न्यास बोर्ड रांची द्वारा पत्रांक 817/2006 दिनांक 15/06/2006 को उक्त धर्मशाला का आय व्यय प्रतिवेदन एवं पर्षद शुल्क भुकतान करने का निर्देश दिया गया था। फिर अधिकारीयों की मिली भगत से ये ज़मीन कैसे बिक गई। इस पत्र ने एक नया मोड़ ले लिया है। लगता है अब इस मामले में कई अधिकारी नप सकते है।
अंत में अब सवाल उठता है, जब अंचला अधिकारी ही अस्थायी न्यासी थे तो फिर इसका एलपीसी कैसे निकला। क्या अधिकारीयों की मिली भगत से धर्मशाला बिक गई? इतना दाव पेच में भी इसे तोड़ने का अधिकार कैसे मिल गया। इस पर रिपोर्ट बनाने वाले अधिकारी ने सभी पत्र को आखिर क्या नहीं पढ़े होंगे? अंचला अधिकारी को मालूम नहीं था कि धर्मशाला न्यासी हम ही हैं। कई सवाल खड़े हो रहें हैं परन्तु अभी भी ये जांच का विषय है। अब आगे क्या होगा देखने वाली बात होगी, फ़िलहाल इस मामले में एक नया अध्याय खुल गया है।