पिछले दस वर्षों में बदला है राजनीतिक स्वरूप, जनता को प्रतिनिधि से होकर गुजरना पड़ता है अपने चुने हुवे मंत्री, सांसद और विधायक तक
Bulletin Page Desk: पिछले दस वर्षों में अचानक राजनीतिक स्वरूप में बदलाव आ गया है। मंत्री, सांसद और विधायक जी डायरेक्ट जनता से नही मिलते हैं, आज कल नेता जी से मिलने से पहले उनका प्रतिनिधि से अपॉन्टमेंट लेना पड़ता है। प्रतिनिधि अगर न चाहे तो मिलना भी मुश्किल है।
कैसे बदला स्वरूप और कैसे शुरू हुआ प्रतिनिधि का चलन
नेता जी ने अपने क्षेत्र के समस्याओं को अपने तक उजगार करने, तथा जनता को सुहोलियत और नौकरशाह पर शिकंजा कसने के लिए ये प्रचलन चालू किया था।
वास्तव में क्या था प्रतिनिधि का काम
जन प्रतिनिधि को पद देकर लोगों की समस्या का निदान करने के लिए क्षेत्र में एक अलग पहचान देने का कार्य नेताओं ने किया था, ताकि आमजन को कोई दिक्कत ना हो।
नेताओं का हार का वजह बनते जा रहे हैं प्रतिनिधि
विभागीय प्रतिनिधि या समान्य प्रतिनिधि का प्रचलन अब एक अलग रूप ले रहा है। समाज में इस पद का दुरुपयोग हो रहा है, और दिनों दिन नेता जी का हारने का वजह भी यही प्रतिनिधि बनते जा रहें है। क्योंकि नेता जी का डायरेक्ट जनता से संपर्क टूटता जा रहा है, जनता का नाराज़गी को समझ नही पाने के कारण हार का वजह बन रहा है। और इनमें से कुछ प्रतिनिधि अपना जेब भरने के चक्कर में नौकरशाह और जनता दोनो से सम्बन्ध खराब कर रहें है। जिसकी भनक नेताजी को कान तक नहीं पहुंच पाता है, और नाराज़गी का शिकार चुनाव में नेताजी खुद हो जाते हैं। लेकिन कुछ प्रतिनिधि अच्छा भी कार्य कर रहें हैं।